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अब गुलाम नबी आजाद का प्रचार समिति पद से इस्तीफा,क्या कांग्रेस नेता का दल से भर गया मन? विदाई में रो पड़े थे पीएम मोदी

नई दिल्ली:कांग्रेस की परेशानी कम होने का नाम ही नहीं ले रही है कभी हार तो कभी पार्टी से दिग्गजों का जाना यह वाकई अवसर का फायदा लेना है या लोगो का भरोशा टूटना या बीना दिशा वाली नेतृत्व,इसी कड़ी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) आजकल अनमने दिख रहे हैं। जी-23 नेताओं के अगुआ नेताओं में शुमार आजाद इन दिनों पार्टी के कार्यक्रमों में भी नहीं दिखते हैं। कांग्रेस में भले ही आजाद आज कल जुदा-जुदा दिख रहे हैं पर पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने इस दिग्गज नेता की एक वक्त जमकर तारीफ की थी। इस तारीफ के बाद ये कयास भी लगाए जाने लगे थे कि आजाद शायद पाला बदल लें। इस बीच, अब एक नए घटनाक्रम ने उनकी नाराजगी की खबरों को फिर से हवा दे दी है। दरअसल, आजाद ने जम्मू-कश्मीर में पार्टी के प्रचार समिति का चीफ नियुक्त होने के महज 3 घंटे के बाद ही इस्तीफा दे दिया। पार्टी ने आजाद को खुश करने के लिए कांग्रेस ने उनके करीबी विकार रसूल वानी को राज्य का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था। लेकिन आजाद ने अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए पद छोड़ दिया है। माना जा रहा है कि आजाद पार्टी के फैसले से खुश नहीं हैं।

सोनिया गाँधी को जी-23 नेताओं की चिट्ठी और गुलाम नबीआजाद
सोनिया गांधी को जी-23 के नेताओं ने चिट्ठी लिखकर पार्टी में बदलाव की मांग की थी। हालांकि, पार्टी ने इस आवाज को थामने में सफलता तो पा ली लेकिन आजाद इस मसले पर अलग-थलग पड़ते दिखे। यहां तक कि पार्टी ने उनका राज्यसभा कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें दोबारा उच्च सदन में भेजने की जहमत तक नहीं उठाई। पार्टी ने उनकी जगह गांधी फैमिली के करीबी नेताओं को राज्यसभा भेज दिया था। नेशनल हेरल्ड मामले में सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ में आजाद ने केंद्र सरकार से इस जांच को रोकने की अपील की थी। लेकिन वह खुलकर इसके खिलाफ हुए पार्टी के विरोध प्रदर्शन में भाग नहीं लिया था।

जी-23 के नेता गुलाम नबी आजाद ने उठाई थी आवाज
‘जी 23’ में शामिल गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस आलाकमान को यह स्‍वीकार करने की नसीहत दी थी कि पार्टी कमजोर हुई और इसे मजबूत करने के लिए काम करने की जरूरत है। गुलाम नबी आजाद की मौजूदगी में सिब्‍बल ने कहा था कि कांग्रेस कमजोर हो गई है, यह बात स्‍वीकार कर लेनी चाहिए। वहीं, आनंद शर्मा ने कहा था कि मुझे किसी को यह बताने का अधिकार नहीं है कि हम कांग्रेस के लोग हैं या नहीं। हमारे बीच कोई भी खिड़की से नहीं आया है। हम सभी दरवाजे से चले हैं। हम छात्रों और युवा आंदोलन के माध्‍यम से यहां तक आए हैं। अब कपिल सिब्बल तो पार्टी छोड़ चुके हैं, वहीं आनंद शर्मा साइडलाइन चल रहे हैं। ऐसे में आजाद के इस्तीफे के अब कई मायने निकाले जा रहे हैं।

क्या आजाद का मन कांग्रेस से भर गया ?
गुलाम नबी आजाद पार्टी के कामकाज से खुश नहीं हैं कयास तो ये भी लगाए जा रहे हैं कि आजाद जब राज्यसभा से सेवामुक्त हो रहे थे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी जमकर तारीफ की थी। उस दौरान ये भी कहा जाने लगा था कि शायद आजाद पाला बदल लें। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, कांग्रेस ने आजाद से संपर्क साधा था और उनकी मांग पर विचार करने का आश्वासन दिया था। पर कहीं न कहीं पीएम मोदी और आजाद की नजदीकी का जिक्र होता रहा है। शायद इसी का खामियाजा था कि उनको कांग्रेस ने राज्यसभा में दोबारा नहीं भेजा। तो क्या उनके इस्तीफे को भी इससे जोड़कर देखा जा सकता है? विश्लेषकों की माने तो राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। राजनीतिक दरवाजे हमेशा खुले है।

राज्यसभा से रिटायर होने पर रो पड़े थे पीएम मोदी
संसद में तीन दशक गुजार चुके कांग्रेस नेता आजाद 2021 में राज्यसभा से रिटायर हुए थे। उस दौरान उनके विदाई भाषण में बोलते हुए पीएम मोदी भावुक हो गए थे। पीएम मोदी ने रूंधे गले से आजाद संग बिताए पलों को याद किया और एक वक्‍त तो रो पड़े। मोदी ने कहा कि ‘गुलाम नबी आजाद के बाद इस पद (नेता प्रतिपक्ष) को जो संभालेंगे, उनको गुलाम नबी जी से मैच करने में बहुत दिक्‍कत पड़ेगी।’ इसके बाद मोदी ने उस वक्‍त का एक किस्‍सा सुनाया जब वह गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे और जम्‍मू-कश्‍मीर में गुजरात के यात्रियों पर आतंकी हमला हुआ था। उस समय गुलाम नबी आजाद ने जैसी चिंता गुजरात के लोगों के लिए दिखाई, मोदी उसका जिक्र करते हुए रो पड़े। मोदी ने गुलाम नबी आजाद को संसदीय लोकतंत्र में योगदान के लिए सैल्‍यूट भी किया।

नरेंद्र मोदी की तारीफ गुलाम नबी आजाद ने भी की थी
गुलाम नबी आजाद ने भी रिटायर होने के बाद पीएम की तारीफ की थी। आजाद ने उन्होंने जमीन से जुड़ा नेता बताया था। उन्होंने कहा था कि लोगों को उनसे सीखना चाहिए कि कामयाबी की बुलंदियों पर जाकर भी कैसे अपनी जड़ों को याद रखना चाहिए। उन्होंने कहा था, ‘मुझे बहुत सारे लीडरों की बहुत सी बातें अच्‍छी लगती हैं। मैं खुद गांव का हूं और बहुत गर्व होता है। हमारे पीएम मोदी भी कहते हैं कि वह गांव से हैं। कहते हैं कि बर्तन मांजते थे, चाय बेचते थे। सियासी तौर पर हम उनके खिलाफ हैं, लेकिन कम से कम जो अपनी असलियत है, वह उसको नहीं छिपाते। यदि आपने अपनी असलियत छिपाई तो आप मशीनरी दुनिया में जी रहे होते हैं।

हा,यहाँ एक बात कांग्रेस को सोचनी होगी कि जिस तरह से उसके नेता पार्टी से जा रहे है उससे जनता के बीच उनकी विश्वसनीयता कम होती जा रही है और इसका परीणाम चुनाव स्पष्ट झलक रहा है,ऐसे में कांग्रेस को अपने कुनबे को बचाना होगा और जनता के बीच अच्छा सन्देश जाए इसके हाईकमान के काम और नेतृत्व शैली में सुधार होना जरुरी है।

 

 

 

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