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गंगा नदी की सफाई के लिए समग्र प्रयास

गंगा नदी की सफाई के लिए समग्र प्रयास

गंगा नदी की सफाई के लिए समग्र प्रयास

‘नमामि गंगे कार्यक्रम‘ एक एकीकृत संरक्षण मिशन है। इसे जून 2014 में 20,000 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ केंद्र सरकार के ‘महत्वाकांक्षी कार्यक्रम’ के रूप में अनुमोदित किया गया था। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय नदी गंगा के प्रदूषण में प्रभावी कमी और संरक्षण के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करना है।

भारत सरकार (जीओआई) ने गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के संरक्षण के लिए 2014-15 में 20,000 करोड़ रुपये के बजटीय परिव्यय के साथ नमामि गंगे कार्यक्रम (एनजीपी) शुरू किया था जिसकी अवधि पांच वर्षों के लिए मार्च 2021 तक थी। इस कार्यक्रम को 22,500 करोड़ रुपये के बजटीय परिव्यय के साथ मार्च 2026 तक बढ़ा दिया गया है।

राष्ट्रीय गंगा योजना (सीएस) को वर्ष 2025-26 के लिए 3400 करोड़ रुपये का वित्तीय परिव्यय आवंटित किया गया है। इस निवेश का उद्देश्य सीवेज उपचार क्षमता को बढ़ाना, पानी की गुणवत्ता में सुधार करना और गंगा नदी का संरक्षण करने तथा 2025 तक निर्धारित स्नान मानकों को प्राप्त करने के लिए औद्योगिक कचरे के निर्वहन को विनियमित करना है।

गंगा: भारत की जीवन रेखा

दुनिया की सबसे पवित्र नदियों में से एक गंगा नदी को अत्यधिक जल दोहन और प्रदूषण के कारण गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है। भारत की सांस्कृतिक विरासत के महत्वपूर्ण हिस्से और जीविका के प्रमुख संसाधन के रूप में इस नदी की स्वच्छता सबसे महत्वपूर्ण है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, नमामि गंगे कार्यक्रम को प्रदूषण को प्रभावी ढंग से कम करने और गंगा नदी को संरक्षित करते हुए उसे फिर से पवित्रता और शुद्धता के पुराने रूप में लाने के दोहरे उद्देश्यों के साथ शुरू किया गया था।

गंगा नदी बेसिन

गंगा नदी बेसिन भारत में सबसे बड़ा है, जो देश के 27 प्रतिशत भूभाग में फैला हुआ है और इसकी लगभग 47 प्रतिशत आबादी का भरण-पोषण करता है। 11 राज्यों में फैले इस बेसिन में भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 27 प्रतिशत हिस्सा शामिल है। इस बेसिन के अधिकांश भाग, लगभग 65.57 प्रतिशत, में कृषि कार्य किया जाता है, जबकि 3.47 प्रतिशत क्षेत्र में जल निकाय हैं। वर्षा के संदर्भ में कुल बारिश का 35.5 प्रतिशत प्राप्त करने के बावजूद, गंगा नदी बेसिन भारत में साबरमती बेसिन के बाद दूसरा सबसे अधिक पानी की कमी वाला बेसिन है, जिसमें प्रमुख भारतीय नदी बेसिनों में औसत प्रति व्यक्ति वार्षिक वर्षा जल का केवल 39 प्रतिशत है। [2]

विज़न

गंगा संरक्षण का दृष्टिकोण इस नदी की संपूर्णता को बहाल करने के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे “अविरल धारा” (निरंतर प्रवाह), “निर्मल धारा” (अप्रदूषित प्रवाह) सुनिश्चित करके परिभाषित किया गया है, और इसकी भूवैज्ञानिक और पारिस्थितिक अखंडता को बनाए रखा गया है। सात आईआईटी के संघ ने एक व्यापक गंगा नदी बेसिन प्रबंधन योजना (जीआरबीएमपी) विकसित की थी, जिसमें बहु-क्षेत्रीय और बहु-एजेंसी कार्यक्रम के साथ एक एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन (आईआरबीएम) प्रयास पर जोर दिया गया था।

प्रमुख कार्यक्रम

पिछले कई वर्षों से, एनएमसीजी की ओर से किये गए ठोस प्रयासों से गंगा नदी के प्राचीन गौरव को बहाल करने में सफलता मिल रही है।

प्रगति अवलोकन (31 जनवरी 2025 तक) [3]

प्रदूषण मुक्त गंगा के लिए सरकार की हालिया पहल [4]

निष्कर्ष

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) गंगा के संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर उपलब्ध सर्वोत्तम ज्ञान और संसाधनों का उपयोग करने का प्रयास करता है। विभिन्न कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण प्रगति के साथ, यह कार्यक्रम भावी पीढ़ियों के लिए स्वच्छ और समृद्ध गंगा सुनिश्चित करने के अपने लक्ष्य की ओर प्रयास करना जारी रखता है।

स्रोत: पीआईबी

(अस्वीकरण: संदेशवार्ता डॉट कॉम द्वारा इस रिपोर्ट के केवल शीर्षक, तस्वीर और कुछ वाक्यों पर फिर से काम किया गया हो सकता है।)

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