मैजिस्ट्रेट की यह डयूटी है गंभीर अपराध में छानबीन के तत्काल आदेश दे’,किस केस में सुप्रीम कोर्ट ने की है यह महत्वपूर्ण टिप्पणी
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट की ड्यूटी को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट की ड्यूटी है कि वह पुलिस छानबीन का आदेश पारित करे अगर उन्हें पहली नजर में दिखता है कि संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence हुआ है और तथ्यों से लगता है कि पुलिस की छानबीन की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा-156 (3) के तहत मैजिस्ट्रेट ड्यूटी बाउंड है कि वह संज्ञेय अपराध के मामले में छानबीन का आदेश दे। सीआरपीसी में इंग्लिश का May शब्द का इस्तेमाल हुआ है यानी मैजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया है कि वह छानबीन का आदेश दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस अधिकार का प्रयोग न्यायसंगत तरीके से करना होगा,साथ ही यह भी कहा है कि यह सही है कि सीआरपीसी की धारा-156 (3) शब्द May का प्रयोग हुआ है जो मैजिस्ट्रेट को अधिकार देता है कि वह पुलिस को छानबीन का आदेश देगा। मैजिस्ट्रेट के सामने जब शिकायत होती है तो वह छानबीन का आदेश देता है। लेकिन मैजिस्ट्रेट को जो अधिकार मिले हैं उसका इस्तेमाल वह मनमाना नहीं कर सकता है। ऑर्डर न्यायसंगत होना चाहिए और ज्यूडिशियल तौर पर तार्किक होना चाहिए।
क्या है संज्ञेय अपराध
CRPC में (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) संज्ञेय अपराध की परिभाषा ऐसे अपराध के रूप में की गई है, जिसमें गिरफ्तारी के लिए पुलिस को किसी वारंट की जरूरत नहीं होती। संज्ञेय अपराध सामान्यतः गंभीर होते हैं जिनमें पुलिस को तत्काल कार्रवाई करनी होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने सेक्सुअल ऑफेंस मामले में भी की है टिप्पणी
मध्यप्रदेश के एक सेक्सुअल ऑफेंस (Sexual Offence) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की और कहा कि ऐसे केस जहां मैजिस्ट्रेट को पहली नजर में शिकायत देखने के बाद संज्ञेय अपराध दिखता है तो मैजिस्ट्रेट की ड्यूटी है कि वह सीआरपीसी की धारा- 156 (3) के तहत पुलिस छानबीन का आदेश पारित करे। मैजिस्ट्रेट को सेक्सुअल ऑफेंस के केस में छानबीन का आदेश देना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर मामला सेक्सुअल ऑफेंस की शिकायत से संबंधित हो या इस तरह के ऑफेंस हों जहां विक्टिम ट्रॉमटाइज्ड हो तो मैजिस्ट्रेट को शिकायती पर दायित्व नहीं डालना चाहिए बल्कि उसे पुलिस छानबीन का आदेश पारित करना चाहिए। शिकायती के लिए यह संभव नहीं है कि वह सारे साक्ष्य जुटाए और पेश करे।
आखिर मामला क्या है
शिकायती महिला ने मौजूदा मामले में पुलिस के सामने संस्थान के वीसी के खिलाफ शिकायत की थी और कहा था कि उसे गलत तरीके से टच किया गया है। लेकिन जब उसकी शिकायत पर कार्रवाई नहीं हुआ तो उसने एसपी के सामने शिकायत की फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होने पर मैजिस्ट्रेट के सामने याचिका दायर की। तब फर्स्ट क्लास ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट ने पुलिस से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। मामला सुप्रीम कोर्ट में जब आया तो सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार की और ग्वालियर के संबंधित मैजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वह छानबीन का आदेश पारित करे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा पुलिस की ड्यूटी है संज्ञेय अपराध में केस दर्ज करे:
ललित कुमार बनाम यूपी केस का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस की ड्यूटी है कि संज्ञेय अपराध में वह केस दर्ज करे। अगर पुलिस को छानबीन के बाद लगता है कि केस नहीं बनता तो वह सीआरपीसी की धारा-173 के तहत फाइनल रिपोर्ट दे सकता है। लेकिन पुलिस के लिए संज्ञेय अपराध के केस में यह ओपन नहीं है कि वह केस दर्ज करने से इनकार कर दे। कानून में साफ है कि पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि उसके सामने अगर संज्ञेय अपराध का मामला आता है तो वह केस दर्ज करने से इनकार कर दे।
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