विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2024
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस प्रत्येक वर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत सबसे पहले 1992 में विश्व मानसिक स्वास्थ्य महासंघ (डब्लयूएफएमएच) द्वारा की गई थी। वैश्विक स्तर पर इस आयोजन का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए किये जा रहे प्रयासों में एकजुटता लाना है। पिछले कुछ वर्षों में, सरकारों, संगठनों और व्यक्तियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में स्थायी बदलाव लाने वाली पहलों में सहयोग के लिए यह दिन एक महत्वपूर्ण बन गया है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का महत्व, व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों में मानसिक स्वास्थ्य के गहन प्रभाव की बढ़ती मान्यता से रेखांकित होता है।
2024 की थीम है- कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य , मानसिक स्वास्थ्य और कार्यस्थल के महत्वपूर्ण सम्बंध को उजागर करती है। अनुमान है कि वैश्विक आबादी का 60% हिस्सा किसी न किसी रूप में रोजगार से जुड़ा है। इसलिए कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को महत्व देना अनिवार्य हो गया है। खराब कामकाजी परिस्थितियों के कारण मानसिक स्वास्थ्य सम्बंधी महत्वपूर्ण जोखिम सामने आ सकते हैं, जबकि सुरक्षित और समावेशी कार्य वातावरण मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकता है। कार्यस्थल मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा दें, नुकसान से बचाएं और उन लोगों का सहयोग करें जिन्हें मदद की ज़रूरत है, यह सुनिश्चित करने के लिए थीम सामूहिक कार्रवाई करने के महत्व पर जोर देती है।
कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य: प्रमुख कारक और विचार
- मानसिक स्वास्थ्य और काम का आपस में गहरा सम्बंध है: कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, उनके उद्देश्य सुनिश्चित करने के साथ ही स्थिरता और नौकरी की संतुष्टि प्रदान करने के लिए एक सकारात्मक और सहयोगपूर्ण कार्य वातावरण महत्वपूर्ण है। दूसरी ओर, प्रतिकूल कार्य परिस्थितियाँ मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं और इससे उत्पादकता और मनोबल में कमी आ सकती है। एक समावेशी और सम्मानजनक कार्यस्थल कर्मचारियों को अधिक प्रेरित करता है। इसके विपरीत, तनाव, भेदभाव, दुर्व्यवहार और सूक्ष्म प्रबंधन के कारण प्रतिकूल वातावरण बन सकता है, जो प्रेरणा और नौकरी से संतुष्टि को कम करता है।
- कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए जोखिम: कर्मचारियों को मानसिक स्वास्थ्य के लिए खराब कामकाजी परिस्थितियों, भेदभाव और सीमित स्वायत्तता जैसे कई तरह के जोखिमों का सामना करना पड़ता है। कम वेतन वाली या असुरक्षित नौकरियों में अक्सर अपर्याप्त सुरक्षा होती है, जिससे इस प्रकार की नौकरियां करने वाले कर्मचारी के लिए मनो-सामाजिक जोखिमों की समस्या बढ़ जाती है, जिससे उनका समग्र कल्याण और अधिक प्रभावित हो सकता है।
- कर्मचारियों पर प्रभाव: पर्याप्त सहयोग के बिना, मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से जूझ रहे व्यक्तियों में आत्मविश्वास की कमी, काम में मन न लगना और उनके बार-बार अनुपस्थित होने की स्थिति हो सकती है। इसका प्रभाव कार्यस्थल से परे भी देखा जा सकता है, जिससे रोजगार पाने या उसे किए जान की क्षमता प्रभावित हो सकती है। ये चुनौतियाँ परिवार के सदस्यों और देखभाल करने वालों को भी प्रभावित करती हैं और इससे उनके जीवन में तनाव और बढ़ जाता है।
- कार्य और समाज पर व्यापक प्रभाव: कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएं केवल व्यक्तिगत कर्मचारियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनका व्यापक सामाजिक प्रभाव है। खराब मानसिक स्वास्थ्य के कारण कार्य उत्पादकता में कमी, कर्मचारियों की अनुपस्थिति और कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। वैश्विक स्तर पर, अवसाद और चिंता प्रत्येक वर्ष लगभग 12 बिलियन कार्यदिवसों के नुकसान का कारण बनते हैं, इससे अनुपचारित मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के आर्थिक और सामाजिक परिणामों का पता चलता है।
- रोजगार में समस्याएं और बाधाएं: मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या एक महत्वपूर्ण बाधा है जो व्यक्तियों को मदद मांगने और रोजगार बनाए रखने से रोकता है। मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे लोगों के साथ कार्यस्थल पर भेदभाव उनकी सफलता की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। मानसिक स्वास्थ्य की खराब स्थिति वाले कर्मचारियों के साथ जागरूकता कार्यक्रम, प्रशिक्षण और जुड़ाव अधिक समावेशी, सहायक कार्य वातावरण में योगदान दे सकते हैं जो इन बाधाओं को दूर करते हैं।
- कर्मचारियों को सफल होने में सहायता करना: खराब मानसिक स्वास्थ्य स्थिति वाले कर्मचारी कार्यस्थल पर सफल हो सकें, यह सुनिश्चित करने में नियोक्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नियमित सहायक बैठकें, निर्धारित अवकाश और कार्यों को धीरे-धीरे फिर से शुरू करना और कर्मचारियों की स्थितियों का प्रबंधन करने जैसे उचित समायोजन उन्हें उत्पादक बने रहने में मदद करता है। इलाज की सुविधाओं की पेशकश भी एक महत्वपूर्ण अंतर ला सकती है।
- मानसिक स्वास्थ्य सहयोग के लिए प्रबंधकों को प्रशिक्षित करना: नियोक्ताओं को कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य तनावों की पहचान करने और उन्हें दूर करने के लिए प्रबंधकों के प्रशिक्षण में निवेश करना चाहिए। प्रशिक्षित प्रबंधक सकारात्मक और सहायक कार्य वातावरण को बढ़ावा देने के लिए बेहतर ढंग से तैयार होते हैं, जो तनाव कम करने और कर्मचारियों के बीच मानसिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।
- सरकारी कार्रवाई और सहयोग: सरकारों, नियोक्ताओं और प्रतिनिधि संगठनों को सार्थक बदलाव लाने के लिए, मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों को रोकने और मानसिक कल्याण को बढ़ावा देने वाली नीतियां बनाने में सहयोग करना चाहिए। इन प्रयासों का उद्देश्य ऐसे कार्यस्थल का निर्माण होना चाहिए जहां मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता मिले और कर्मचारियों के लिए सुरक्षात्मक उपाय किए जाएं।
- अपने मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना: कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए सरकारें और नियोक्ता तो जिम्मेदार हैं ही, लोग भी अपने स्वयं के कल्याण के लिए कदम उठा सकते हैं। तनाव प्रबंधन तकनीक सीखना और मानसिक स्वास्थ्य में होने वाले बदलावों के प्रति सचेत रहना आवश्यक है। जरूरत पड़ने पर किसी विश्वसनीय व्यक्ति या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करके आवश्यक सहायता प्राप्त की जा सकती है।
मानसिक स्वास्थ्य: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 द्वारा नीतिगत सिफारिशें
भारत, दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देशों में से एक है और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए कठिन चुनौतियों का सामना कर रहा है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए धन की कमी और मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक के मामलों वाली पृष्ठभूमि के साथ, भारत ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे और नीतियों में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
22 जुलाई, 2024 को केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में पहली बार, मानसिक स्वास्थ्य, इसके महत्व और नीतिगत सिफारिशों पर इसके प्रभाव के बारे में बात की गई। व्यक्तिगत और राष्ट्रीय विकास के लिए मुख्य रूप से प्रभावशाली संचालक के रूप में मानसिक स्वास्थ्य को स्वीकार करते हुए, सर्वेक्षण में कहा गया है कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएमएचएस) 2015-16 के अनुसार, भारत में 10.6 प्रतिशत वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित हैं, जबकि मानसिक विकारों के लिए उपचार का अंतराल विभिन्न विकारों के लिए 70 प्रतिशत और 92 प्रतिशत के बीच है। इसके अलावा, मानसिक बीमारी की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों (6.9 प्रतिशत) और शहरी गैर-मेट्रो क्षेत्रों (4.3 प्रतिशत) की तुलना में शहरी मेट्रो क्षेत्रों में (13.5 प्रतिशत) थी। एनसीईआरटी स्कूलों के छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण का हवाला देते हुए सर्वेक्षण ने कोविड-19 महामारी के कारण किशोरों में खराब मानसिक स्वास्थ्य के बढ़ते मामलों पर प्रकाश डाला है। सर्वेक्षण में 11 प्रतिशत छात्रों ने चिंता महसूस करने, 14 प्रतिशत ने अत्यधिक भावुक होने और 43 प्रतिशत ने मनोदशा में उतार-चढ़ाव के अनुभव की बात कही है।
सर्वेक्षण में बताया गया है कि समग्र आर्थिक स्तर पर हैं मानसिक स्वास्थ्य विकार अनुपस्थिति के कारण महत्वपूर्ण उत्पादकता हानि, उत्पादकता में कमी, दिव्यांगता, स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि आदि। तनावपूर्ण जीवन स्थितियां, वित्तीय अस्थिरता और तरक्की के अवसरों की कमी के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य के जोखिम को प्रभावित करने वाली गरीबी के भी प्रमाण हैं और ये मनोवैज्ञानिक संकट को बढ़ाते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर नीतिगत सिफारिशें
अधिकतम प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा कमियों को दूर करने के लिए आर्थिक सर्वेक्षण में मानसिक स्वास्थ्य सेवा में प्रगति को गति देने के लिए प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। प्रमुख नीतिगत सिफारिशों में शामिल हैं:
- मनोचिकित्सकों की संख्या बढ़ाने के प्रयासों को दोगुना किया जाएगा। 2021 में प्रति लाख जनसंख्या पर 0.75 मनोचिकित्सकों से बढ़ाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियम के अनुसार प्रति लाख जनसंख्या के लिए 3 मनोचिकित्सक किया जाएगा।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं को समझने के लिए उत्कृष्टता केंद्रों की सेवाओं के लिए व्यापक दिशानिर्देश विकसित करना।
- उपयोगकर्ताओं, पेशेवरों और हितधारकों से फीडबैक लेकर करके कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का आकलन किया जाएगा जिससे कि आवश्यक परिवर्तन किए जा सकें और व्यापक जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
- सहकर्मी सहायता नेटवर्क, स्वयं सहायता समूह और समुदाय-आधारित पुनर्वास कार्यक्रमों को बढ़ावा देने से मानसिक विकारों के कलंक को दूर करने और अपनेपन की भावना विकसित करने में मदद मिल सकती है।
- सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने में सहायता के लिए प्रयासों को बढ़ाने, ज्ञान साझा करने तथा भविष्य की नीतियों को बेहतर बनाने हेतु संसाधनों का लाभ लेने के लिए गैर सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी करना।
- निर्णय लेने, सेवा नियोजन और सिफारिश के प्रयासों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के व्यक्तिगत अनुभव वाले व्यक्तियों को शामिल करने से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की व्यक्ति-केंद्रितता और सुधार अभिविन्यास में वृद्धि हो सकती है।
- विकारों की शीघ्र पहचान के लिए स्कूल जाने से पहले यानी आंगनवाड़ी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाना।
- सरकारी और निजी क्षेत्र में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए दिशानिर्देशों का मानकीकरण।
- स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को एकीकृत करने के लिए प्रभावी मार्ग अपनाना जिसमें शिक्षकों और छात्रों के लिए आयु-उपयुक्त मानसिक स्वास्थ्य पाठ्यक्रम विकसित करना, स्कूलों में प्रारंभिक हस्तक्षेप और सकारात्मक भाषा को प्रोत्साहित करना, समुदाय-स्तर पर बातचीत को बढ़ावा देना और प्रौद्योगिकी की भूमिका को संतुलित करना शामिल है।
- मानसिक स्वास्थ्य के विषय को समझने और कलंक को मिटाने के लिए नीचे के स्तर से ऊपर तक पूरे समुदाय का दृष्टिकोण।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए, व्यक्तिगत स्तर पर मौलिक अनिच्छा को स्वीकार करके और उसका समाधान करके मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से निपटना।
प्रमुख पहल: बेहतर कल के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास
भारत सरकार ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निमहांस), बेंगलुरु के माध्यम से 2016 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएमएचएस) कराया था। सर्वेक्षण के अनुसार, 18 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 10.6 प्रतिशत वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित हैं।
इस समस्या से निपटने के लिए, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) के प्रमुख घटक, जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (डीएमएचपी) को 767 जिलों में शुरू किया गया है और इसमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को सहायता प्रदान की गई है। डीएमएचपी का उद्देश्य स्कूलों और कॉलेजों के लिए आत्महत्या रोकथाम, कार्यस्थल तनाव प्रबंधन, जीवन कौशल प्रशिक्षण और परामर्श जैसी सेवाएं प्रदान करना है। जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में उपलब्ध सुविधाएं बाह्य रोगी सेवाएं, परामर्श, मनो-सामाजिक हस्तक्षेप, गंभीर मानसिक विकारों के लिए निरंतर देखभाल, दवाएं, आउटरीच कार्यक्रम और एम्बुलेंस सेवाएं प्रदान कर रही हैं। इसके अतिरिक्त, जिला स्तर पर 10-बेड की इन-पेशेंट सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा, उनके देखभाल पैकेजों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को एकीकृत करते हुए 1.73 लाख से अधिक उप स्वास्थ्य केंद्रों (एसएचसी) और पीएचसी को आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में अपग्रेड किया गया है।
मानसिक स्वास्थ्य सेवा क्षमता को और बढ़ाने के लिए, सरकार ने एनएमएचपी के तृतीयक देखभाल घटक का विस्तार किया है। इसमें मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों के पीजी विभागों में छात्रों की सीटें बढ़ाने के साथ-साथ तृतीयक स्तर की उपचार सुविधाएं प्रदान करने के लिए 25 उत्कृष्टता केंद्रों को मंजूरी देना शामिल है। इसके अतिरिक्त, 19 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य के 47 स्नातकोत्तर विभागों की क्षमता में विस्तार किया गया है, साथ ही 22 नए स्थापित एम्स में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का प्रावधान किया गया है। पूरे भारत में, 47 सरकारी मानसिक अस्पताल हैं, जिनमें तीन केंद्रीय मानसिक संस्थान शामिल हैं: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु, लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई क्षेत्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, तेजपुर, असम और केंद्रीय मनोरोग संस्थान, रांची।
एक महत्वपूर्ण पहल के तहत, सरकार ने गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और देखभाल सुधार के लिए 10 अक्टूबर, 2022 को राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनटीएमएचपी) शुरू किया। 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 53 टेली मानस सेल काम कर रहे हैं। 08 अक्टूबर, 2024 तक हेल्पलाइन नंबर पर 14.5 लाख से अधिक कॉल के माध्यम से समाधान को लेकर बातचीत की गई।
निष्कर्ष
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस हमारे जीवन और कार्यस्थलों पर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के महत्व की ओर महत्वपूर्ण ध्यान दिलाता है। मानसिक स्वास्थ्य और काम आपस में करीब से जुड़े होने के कारण, सरकारों, नियोक्ताओं और हितधारकों के लिए सुरक्षित, समावेशी और सहायक वातावरण बनाने के लिए कार्रवाई करना आवश्यक है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो सके। डब्ल्यूएचओ और डब्ल्यूएफएमएच द्वारा संचालित वैश्विक पहल इस दिशा में अच्छा काम कर रही है, लेकिन जागरूकता बढ़ाने, कलंक को मिटाने और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में सुधार करने के लिए अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है।
नीतियों, सर्वेक्षणों और कार्यक्रमों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए भारत के हालिया प्रयास सराहनीय हैं। मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों को बढ़ाकर और सेवाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में एकीकृत करके, भारत, उपचार मामलों के अंतर को कम करने और देश के मानसिक स्वास्थ्य बोझ को खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। जैसे-जैसे ये प्रयास जारी हैं, ध्यान समावेशी प्रणाली बनाने पर बना रहना चाहिए जो व्यक्तियों को काम और समाज दोनों में तरक्की करने में सक्षम बनाए। आने वाले वर्षों में, सरकारों, संगठनों और व्यक्तियों के बीच निरंतर सहयोग यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सुलभ, प्रभावी और कलंक से मुक्त हो। यह एक ऐसा भविष्य बनाने में मदद करेगा जहां मानसिक स्वास्थ्य को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी जाएगी, और प्रत्येक व्यक्ति अच्छे से काम करते हुए अपना जीवन जी सकेगा।
स्रोत: पीआईबी
(अस्वीकरण: संदेशवार्ता डॉट कॉम द्वारा इस रिपोर्ट के केवल शीर्षक, तस्वीर और कुछ वाक्यों पर फिर से काम किया गया हो सकता है।)