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राष्ट्रीय संस्कृति कोष

सरकार ने 28 नवंबर, 1996 को चैरिटेबल एंडोमेंट एक्ट, 1890 के तहत एक ट्रस्ट के रूप में राष्ट्रीय संस्कृति कोष (एनसीएफ) की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य भारत की मूर्त और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने, उसकी रक्षा करने और उसे संरक्षित करने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के माध्यम से अतिरिक्त संसाधन जुटाना है।

एनसीएफ के कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

i) संरक्षित या अन्य स्मारकों के संरक्षण, रखरखाव, संवर्धन, सुरक्षा, संरक्षण और उन्नयन के लिए कोष का प्रशासन और इस्तेमाल;

ii) विशेषज्ञों और सांस्कृतिक प्रशासकों के एक कैडर के विकास को प्रशिक्षण देना और सुविधा प्रदान करना;

iii) मौजूदा संग्रहालयों में अतिरिक्त स्थान उपलब्ध कराने और नई और विशेष दीर्घाओं को समायोजित करने या बनाने के लिए नए संग्रहालयों का निर्माण करने में सुविधा प्रदान करना;

iv) सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों और रूपों का दस्तावेजीकरण, जो समकालीन परिदृश्य में अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं और या तो लुप्त हो रहे हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं।

एनसीएफ की विशेषताएं:

i) एनसीएफ का प्रबंधन और प्रशासन माननीय संस्कृति मंत्री की अध्यक्षता वाली एक शासी परिषद के माध्यम से किया जाता है और नीतियों को तय करने के लिए इसमें अधिकतम 25 सदस्य होते हैं।

ii) सचिव (संस्कृति) की अध्यक्षता में एक कार्यकारी समिति होती है, जिसमें अधिकतम 11 सदस्य होते हैं, जो उन नीतियों को क्रियान्वित करती है।

iii) आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80जी (ii) के तहत राष्ट्रीय संस्कृति कोष में किए गए दान पर कर में 100 प्रतिशत छूट मिलती है।

iv) एनसीएफ की गतिविधियां कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची VII संख्या (v) के तहत कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) योगदान के वैध पात्र के रूप में शामिल हैं: –

“(v) ऐतिहासिक महत्व की इमारतों और स्थलों तथा कला कृतियों के जीर्णोद्धार सहित राष्ट्रीय विरासतकला और संस्कृति का संरक्षणसार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापनापारंपरिक कलाओं और हस्तशिल्पों का संवर्धन और विकास।

v) वार्षिक खातों का लेखा-जोखा भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा किया जाता है।

एनसीएफ की भूमिका:

एनसीएफ कॉर्पोरेट, एनजीओ आदि के साथ साझेदारी करके संरक्षण और संरक्षण से संबंधित विरासत परियोजनाओं को मानदंडों के अनुसार लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा, एनसीएफ दानकर्ता/प्रायोजक को किसी विशिष्ट स्थान/पहलू के साथ परियोजना को इंगित करने और परियोजना के निष्पादन के लिए कार्यान्वयन एजेंसी को भी इंगित करने की सुविधा प्रदान करता है।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि पीपीपी मोड के तहत एनसीएफ द्वारा समर्थित परियोजनाओं में देरी न हो, एएसआई परियोजनाओं के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक की अध्यक्षता में परियोजना कार्यान्वयन समिति (पीआईसी) और अन्य परियोजनाओं के लिए एनसीएफ/संस्कृति मंत्रालय के अधिकारियों की बैठक नियमित रूप से बुलाई जाती है, ताकि परियोजनाओं की प्रगति और सुचारू कार्यान्वयन की निगरानी की जा सके।

एनसीएफ कॉर्पोरेट, सार्वजनिक उपक्रम, ट्रस्टों और व्यक्तियों से एनसीएफ के माध्यम से केंद्रीय योजना वाले स्मारकों/ सांस्कृतिक परियोजनाओं के रखरखाव और संरक्षण के लिए दान प्राप्त कर सकता है। सभी दानकर्ताओं/ प्रायोजकों की जिम्मेदारी है कि वे किसी विशेष परियोजना के लिए सहमत समझौता ज्ञापन की शर्तों का पालन करें।

केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

स्रोत: पीआईबी

(अस्वीकरण: संदेशवार्ता डॉट कॉम द्वारा इस रिपोर्ट के केवल शीर्षक, तस्वीर और कुछ वाक्यों पर फिर से काम किया गया हो सकता है।)

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